खुसूर-फुसूर नियम कायदे ही बताओगे या कार्रवाई भी करोगे

खुसूर-फुसूर

नियम कायदे ही बताओगे या कार्रवाई भी करोगे

 अक्सर आम आदमी को स्टाम्प की जरूरत पढती है। किसी भी काम में यहां तक की सूचना का अधिकार अधिनियम आवेदन तक में इसका महत्व होता है। बाजार में स्टांप लेने जाओं तो उसका मुल्य तो रूपए 10 ही लिखा होता है लेकिन जिसके यहां से लो वह सीधे रूपए 15 की मांग करता है। आम आदमी बनकर एक नहीं दो नहीं ,चार आठ दुकानों पर घूम लो । सब जगह एक ही भाव। रूपए 50 का स्टांप सीधे 60 में ही मिलता है। दुकान पर उपलब्ध स्टांप का विवरण बोर्ड पर अंकित रखना अनिवार्य है। जिसके नाम वेंडर का लायसेंस है विक्रय के समय उसका होना जरूरी है लेकिन ये सब कागजों और किताब में रहने वाले नियम हैं। एक भी स्टांप मूल किमत में नहीं मिल रहा है। यहां तक की आनलाईन निकाले जाने वाले स्टांप पर भी ज्यादा किमत ही ली जा रही है। इसे लेकर कोष लेखा के अधिकारी ने जागृति दिखाई है कहा है स्टॉम्प निर्धारित मूल्य से अधिक पर बेचने पर विक्रेता के विरुध्द होगी कार्यवाही। उनके अनुसार कतिपय स्टाम्प विक्रेताओं द्वारा स्टाम्प निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य पर बेचे जा रहे हैं । जो कि भारतीय मुद्रांक अधिनियम 1899 तथा मध्यप्रदेश स्टाम्प रुल्स 1942 के विपरीत तथा पंजीयक मुद्रांक द्वारा निर्धारित शर्तों का उल्लंघन है। स्टॉम्प विक्रेताओं को स्टाम्प पर दर्शित मूल्य पर ही स्टॉम्प विक्रय करने के लिए निर्देशीत किया जाता है । नियमों का उल्लंघन करने पर स्टाम्प विक्रेता को 6 माह का कारावास या 500 रु. तक जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है, और लाइसेंस को निरस्त भी किया जा सकता है। खुसूर-फुसूर है कि जब अफसर को मालूम है तो एक्शन क्यों नहीं लेते ये गिदड भभकी देने के पीछे क्या कारण है। वैसे भी लंबे समय से पंजीयक मुद्रांक एवं स्टाम्प के मामले में लंबे समय से कार्रवाई नहीं की है।  साहब नियम कायदे ही बताओगे या कार्रवाई भी करोगे। वैसे तो सब कुछ सब को मालूम है । कागजी घोडे दौडाने बंद करो और धरातल पर आओ,कार्रवाई करके दिखाओ तो जाने।

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